👉 आंदोलन की पृष्ठभूमि: किसानों की समस्याओं की लंबी फेहरिस्त
हरियाणा के करनाल जिले में एक बार फिर किसानों का आक्रोश सामने आया है। इस बार मुद्दा है प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, जिसे शुरू तो किसानों की मदद के उद्देश्य से किया गया था, लेकिन आज वही योजना विवादों के घेरे में आ गई है। किसानों का आरोप है कि बीमा कंपनियां उन्हें उनके नुकसान का सही मुआवजा नहीं दे रही हैं।
किसानों ने बताया कि बारिश, ओलावृष्टि और कीट हमलों से उनकी फसलें खराब हुई हैं, लेकिन जब उन्होंने क्लेम दायर किया तो बीमा कंपनियों ने या तो आवेदन खारिज कर दिए या बेहद कम राशि मंजूर की। कई किसानों को तो महीनों तक क्लेम का कोई जवाब ही नहीं मिला।
👉 किसानों की प्रमुख मांगें: पारदर्शिता और जवाबदेही जरूरी
- इस आंदोलन के पीछे किसानों की कुछ प्रमुख मांगें हैं:
- फसल बीमा योजना में पारदर्शिता लाई जाए और सर्वे निष्पक्ष तरीके से किया जाए।
- बीमा क्लेम प्रक्रिया को सरल और तेज बनाया जाए।
- बीमा कंपनियों की जिम्मेदारी तय की जाए और मुआवजे में देरी पर दंड का प्रावधान हो।
- किसानों के साथ बिना भेदभाव के सभी क्षेत्रों में मुआवजा दिया जाए।
- भारतीय किसान यूनियन (चढ़ूनी) और अन्य किसान संगठनों ने मांग की है कि बीमा कंपनियों को किसानों के सवालों का जवाब देना चाहिए, न कि सिर्फ मुनाफे के लिए काम करना चाहिए।
👉 आंदोलन की रणनीति: 9 जुलाई को करनाल में घेराव
किसानों ने एलान किया है कि 9 जुलाई 2025 को वे करनाल स्थित बीमा कंपनी के दफ्तर का घेराव करेंगे। इसके बाद यदि उनकी मांगे नहीं मानी गईं, तो यह आंदोलन पूरे प्रदेश में फैलेगा। यूनियन के नेताओं ने कहा कि यह शांतिपूर्ण विरोध होगा, लेकिन यदि सरकार और कंपनियां नहीं मानीं, तो वे सड़क से सदन तक लड़ाई लड़ेंगे।
किसान नेताओं ने यह भी चेतावनी दी कि यदि सरकार ने जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया, तो बीमा योजना का पूरी तरह से बहिष्कार किया जाएगा।

👉 सरकार की प्रतिक्रिया: ‘समीक्षा की जा रही है
हरियाणा सरकार के कृषि विभाग के अधिकारियों ने इस मुद्दे पर बयान देते हुए कहा कि किसानों की शिकायतों को गंभीरता से लिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि राज्यस्तरीय समीक्षा बैठक में बीमा क्लेम प्रक्रिया की पारदर्शिता और गति बढ़ाने पर विचार चल रहा है।
लेकिन किसानों का मानना है कि केवल “समीक्षा” कह देने से कुछ नहीं होगा, जब तक कि जमीनी स्तर पर सुधार न हो। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि यदि बीमा कंपनियां किसानों की मदद नहीं कर रहीं, तो सरकार उनका अनुबंध रद्द क्यों नहीं कर रही?
👉 किसानों का दर्द: मेहनत और उम्मीद दोनों पर संकट
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का मकसद था किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से आर्थिक सुरक्षा देना। लेकिन असलियत यह है कि ज़्यादातर किसानों को या तो सही मुआवजा नहीं मिल रहा या कई बार एक भी रुपया नहीं मिल पाता। ऐसे में छोटे और मंझोले किसान आर्थिक तंगी का शिकार हो रहे हैं।
करनाल के एक किसान राजबीर सिंह का कहना है, “हमने अपनी गेहूं की पूरी फसल गंवा दी। बीमा करवाया था, लेकिन कंपनी ने क्लेम खारिज कर दिया कि नुकसान कम हुआ है। क्या हम झूठ बोल रहे हैं? हमारी जमीन पर खुद आकर देखें।”
इस तरह के बयान राज्यभर से आ रहे हैं, जो यह दर्शाते हैं कि किसानों की पीड़ा कितनी गहरी है।
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👉 आगे की राह: समाधान क्या हो सकता है?
यदि सरकार वास्तव में किसानों की मदद करना चाहती है, तो फसल बीमा योजना में निम्नलिखित सुधार आवश्यक हैं:
डिजिटल सर्वे व्यवस्था: जिसमें ड्रोन या सैटेलाइट से फसल नुकसान का सटीक आंकलन किया जा सके।
स्थानीय निगरानी समितियां: जिनमें किसान प्रतिनिधि भी हों, ताकि सर्वे और क्लेम प्रक्रिया पारदर्शी हो।
बीमा कंपनियों की जवाबदेही: यदि वे समय पर मुआवजा नहीं देतीं, तो उनके लाइसेंस रद्द करने का प्रावधान हो।
मासिक रिपोर्टिंग और पब्लिक डैशबोर्ड: जहां हर किसान अपने क्लेम की स्थिति देख सके।
सिर्फ घोषणाओं और समीक्षा बैठकों से किसानों की समस्याएं खत्म नहीं होंगी। सरकार को ज़मीनी सच्चाई को समझते हुए कदम उठाने होंगे।
✨ निष्कर्ष: किसानों की आवाज़ को अनसुना करना अब संभव नहीं
हरियाणा के करनाल में शुरू हुआ यह आंदोलन आने वाले दिनों में अन्य जिलों और राज्यों तक फैल सकता है। देश के अन्नदाता की आवाज़ को लंबे समय तक दबाया नहीं जा सकता। यदि सरकार और बीमा कंपनियां अब भी नहीं चेतीं, तो यह सिर्फ एक बीमा योजना का सवाल नहीं रहेगा, बल्कि यह किसानों की आत्मसम्मान और अस्तित्व की लड़ाई बन जाएगी।